इस धरती से उस अम्बर को लूट गया
फिर से ख़ुदा के आ'ला दर को लौट गया
आदम-ज़ादों की दुनिया से तंग आ कर
एक फ़रिश्ता अपने घर को लौट गया
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यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे
दिल से हो कर दिल तलक जाया करो
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना
सब यहाँ 'जौन' के दिवाने हैं
मस्जिद को मत जाया कर
ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
तुम्हें लगता है जो वैसी नहीं हूँ
तुम्हारे ख़त जला कर के तुम्हें यकसर भुला दूँगी
इस धरती से उस अम्बर को लौट गया
बला की हुस्न-वर है 'अर्शिया-हक़'
तुम भी आख़िर हो मर्द क्या जानो
हिजाब करने की बंदिश मुझे गवारा नहीं