दिल से हो कर दिल तलक जाया करो
बीच के रस्ते न अपनाया करो
मुझ को बातें कम समझ आती हैं तुम
कुछ अमल कर के ही बतलाया करो
Habib Jalib
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सब यहाँ 'जौन' के दिवाने हैं
सहेली की सहेली 'अर्शिया-हक़'
'अर्शिया-हक़' के परस्तारों में हो
अपनी सूरत-ए-ज़र्द छुपाती फिरती हूँ
तेरे लिए मैं बाज़ी लगाऊंगी जान की
बला की हुस्न-वर है 'अर्शिया-हक़'
हिजाब करने की बंदिश मुझे गवारा नहीं
तुम ये कहते हो इक सवाल हो तुम
तुम्हारे ख़त जला कर के तुम्हें यकसर भुला दूँगी
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना
इस धरती से उस अम्बर को लौट गया