मैं ख़ुद पे ज़ब्त खोती जा रही हूँ
जुदाई क्या सितम-आलूद शय है
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(520) Peoples Rate This
बताओ तो तुम्हें कैसी लगी है
अपनी सूरत-ए-ज़र्द छुपाती फिरती हूँ
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना
सब यहाँ 'जौन' के दिवाने हैं
जिस्म को पढ़ते रहे वो रूह तक आए नहीं
मस्जिद को मत जाया कर
तो क्या हुआ जो जन्मी थी परदेस में कभी
'अर्शिया-हक़' के परस्तारों में हो
दिल से हो कर दिल तलक जाया करो
तुम्हारा रोज़ जो मैं सर्फ़ करती रहती हूँ
तुम ये कहते हो इक सवाल हो तुम
तेरे लिए मैं बाज़ी लगाऊंगी जान की