हिजाब करने की बंदिश मुझे गवारा नहीं
कि मेरा जिस्म कोई माल-ए-ज़र तुम्हारा नहीं
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जिस्म को पढ़ते रहे वो रूह तक आए नहीं
'अर्शिया-हक़' के परस्तारों में हो
बला की हुस्न-वर है 'अर्शिया-हक़'
ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
दिल से हो कर दिल तलक जाया करो
मैं ख़ुद पे ज़ब्त खोती जा रही हूँ
यूँ बातें तो बहुत सारी करोगे
इस धरती से उस अम्बर को लौट गया
औरत हो तुम तो तुम पे मुनासिब है चुप रहो
तुम भी आख़िर हो मर्द क्या जानो
तुम्हारे ख़त जला कर के तुम्हें यकसर भुला दूँगी
चमन में न बुलबुल का गूँजे तराना