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फूलों को शर्मसार किया है कभी कभी - सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर कविता - Darsaal

फूलों को शर्मसार किया है कभी कभी

फूलों को शर्मसार किया है कभी कभी

काँटों से हम ने प्यार किया है कभी कभी

मौक़ूफ़ चाक-ए-जेब-ओ-गरेबाँ ही पर नहीं

दामन भी तार-तार किया है कभी कभी

मैं मुज़्तरिब रहा हूँ ये सच है फ़िराक़ में

उन को भी बे-क़रार किया है कभी कभी

दिल का दिया जला के ख़ुद अपने ही ख़ून से

शब शब-भर इंतिज़ार किया है कभी कभी

तन्हा शब-ए-फ़िराक़ में तार-ए-नफ़स के साथ

तारों का भी शुमार किया है कभी कभी

ऐसा भी वक़्त आया है अक्सर हयात में

सर अपना सू-ए-दार किया है कभी कभी

सय्याद मेरे ताइर-ए-दिल ने क़फ़स को भी

नालों से पुर-बहार किया है कभी कभी

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In Hindi By Famous Poet Sayyad Zahiruddin Zaheer. is written by Sayyad Zahiruddin Zaheer. Complete Poem in Hindi by Sayyad Zahiruddin Zaheer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.