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लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-अलम ही से सुकूँ आ जाए है - सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर कविता - Darsaal

लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-अलम ही से सुकूँ आ जाए है

लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-अलम ही से सुकूँ आ जाए है

दिल मिरा उन की नवाज़िश से तो घबरा जाए है

गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़

पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है

बज़्म में मेरे अदू हैं उन से उन का इर्तिबात

ऐसा मंज़र कब मिरी आँखों से देखा जाए है

दिल की दिल ही में रही ये हसरत-ए-दीदार भी

मेरी नज़रें उठते ही वो मुझ से शरमा जाए है

जब न महशर में भी होगा उन का मेरा सामना

आज जी-भर कर तड़प लूँ जितना तड़पा जाए है

क्या सहर होने से पहले ही फ़िराक़-ए-जान है

दिल मिरा कुछ शाम ही से आज बैठा जाए है

आग फ़ुर्क़त की जो भड़की जल गए क़ल्ब-ओ-जिगर

ऐ 'ज़हीर' आतिश-कदे में किस से ठहरा जाए है

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In Hindi By Famous Poet Sayyad Zahiruddin Zaheer. is written by Sayyad Zahiruddin Zaheer. Complete Poem in Hindi by Sayyad Zahiruddin Zaheer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.