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अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं - सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर कविता - Darsaal

अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं

अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं

आब-ओ-गिल के खेल को अपना जहाँ समझा था मैं

जिस दिल-ए-ना-आक़ेबत-अंदेश ने छोड़ा था साथ

ऐसे दीवाने को मीर-ए-कारवाँ समझा था मैं

आँख बंद होते ही मुझ पर खुल गया राज़-ए-हयात

ज़ीस्त को दुनिया में उम्र-ए-जावेदाँ समझा था मैं

उन के क़ब्ज़े में है जन्नत उन के क़ब्ज़े में है नार

इस तअ'ल्ली को हदीस-ए-दीगराँ समझा था मैं

मुस्तक़िल है वो तो बर्क़-ओ-बाद का मस्कन 'ज़हीर'

ये ग़लत-फ़हमी थी जिस को आशियाँ समझा था मैं

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In Hindi By Famous Poet Sayyad Zahiruddin Zaheer. is written by Sayyad Zahiruddin Zaheer. Complete Poem in Hindi by Sayyad Zahiruddin Zaheer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.