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ग़म सहे रुस्वा हुए जज़्बात की तहक़ीर की - सय्यद आशूर काज़मी कविता - Darsaal

ग़म सहे रुस्वा हुए जज़्बात की तहक़ीर की

ग़म सहे रुस्वा हुए जज़्बात की तहक़ीर की

हम ने चाहा आप को हम ने बड़ी तक़्सीर की

रौज़न-ए-ज़िंदाँ से दर आई है सूरज की किरन

बन गई नाक़ूस-ए-आज़ादी सदा ज़ंजीर की

ख़ून के छींटे पड़े हैं शैख़ की दस्तार पर

शहर की गलियों से आई है सदा तकबीर की

ज़ात के अंदर तलातुम ज़ात के बाहर सुकूत

मस्लहत-कोशी ने कैसी शख़्सिय्यत तामीर की

घर के दरबानों ने सारे घर पे क़ब्ज़ा कर लिया

हम ने आँखें खोलने में किस क़दर ताख़ीर की

रास्ता ढूँडो कि मंज़िल ज़ात में महसूर है

बंद दरवाज़ों के बाहर है किरन तनवीर की

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In Hindi By Famous Poet Sayyad Ashoor Kazmi. is written by Sayyad Ashoor Kazmi. Complete Poem in Hindi by Sayyad Ashoor Kazmi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.