उस को देखा तो दिखा कुछ भी नहीं
उस को देखा तो दिखा कुछ भी नहीं
लुट गया सब कुछ बचा कुछ भी नहीं
सोच कर नारा लगाया इश्क़ ने
वो मिला है तो गया कुछ भी नहीं
इश्क़ ज़िंदा यार ज़िंदाबाद है
इस से आगे का पता कुछ भी नहीं
सच बताऊँ दर्द भी सौग़ात है
वर्ना आहों को मिला कुछ भी नहीं
हम को पागल कह रहा है ये जहाँ
इस को लगता है हुआ कुछ भी नहीं
अपनी महफ़िल में अकेला था वही
सारी महफ़िल में दिखा कुछ भी नहीं
इश्क़ की इतनी हक़ीक़त है 'ज़िया'
उस की मर्ज़ी के सिवा कुछ भी नहीं
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