अश्क पीते रहे हर जाम पे हँसते हँसते
अश्क पीते रहे हर जाम पे हँसते हँसते
रो लिए ख़ूब तिरे नाम पे हँसते हँसते
इस तरह चलते रहें राह-ए-मोहब्बत में सदा
ठोकरें खाएँ हर इक गाम पे हँसते हँसते
क्यूँ ख़ता हो गई दानिस्ता तिरे कूचे में
क्यूँ नज़र पहुँची तिरे बाम पे हँसते हँसते
इश्क़ में जज़्बा-ए-आशिक़ भी अजब होता है
जान देता है तिरे नाम पे हँसते हँसते
उलझनें अपनी मुसीबत की बढ़ा लेती है
ज़िंदगी गर्दिश-ए-अय्याम पे हँसते हँसते
काश होते तो दिखाते उन्हें आहों का असर
सो गए जो दिल-ए-नाकाम पे हँसते हँसते
ऐ 'ज़िया' जाओ सितारों में सहर को ढूँडो
रात होने लगी अब शाम पे हँसते हँसते
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