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हस्ब-ए-फ़रमान-ए-अमीर-ए-क़ाफ़िला चलते रहे - सय्यद नसीर शाह कविता - Darsaal

हस्ब-ए-फ़रमान-ए-अमीर-ए-क़ाफ़िला चलते रहे

हस्ब-ए-फ़रमान-ए-अमीर-ए-क़ाफ़िला चलते रहे

पा-ब-जौलाँ दीदा-ओ-लब-दोख़्ता चलते रहे

बे-बसीरत मंज़िलें गर्द-ए-सफ़र होती रहीं

और हम बे-मक़्सद-ओ-बे-मुद्दआ' चलते रहे

फ़स्ल-ए-गुल की चाप थी इस तब-ए-नाज़ुक पर गिराँ

था सफ़र ख़ुशबू का ग़ुंचे बे-सदा चलते रहे

काजली रातों में सूरज के हवाले सो गए

इक़्तिबास अपने लहू से ले लिया चलते रहे

सू-ए-मंज़िल पीठ थी आवारगी जारी रही

फ़ासला हर गाम पर बढ़ता रहा चलते रहे

जब ये देखा पैरहन का तार तक बाक़ी नहीं

कर के ज़ेब-ए-जिस्म ज़ख़्मों की क़बा चलते रहे

आप क्या हम ख़ुद भी सुन पाए न दिल की धड़कनें

अपने सीने पर क़दम रख कर सदा चलते रहे

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In Hindi By Famous Poet Sayed Naseer Shah. is written by Sayed Naseer Shah. Complete Poem in Hindi by Sayed Naseer Shah. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.