घुट के रह जाऊँगा बे-एहसास ग़म-ख़्वारों के पेच
घुट के रह जाऊँगा बे-एहसास ग़म-ख़्वारों के पेच
आ गया हूँ अपने ही कमरे की दीवारों के बीच
मैं मिरा दिल रात पीला चाँद तेरी याद का
मर रही है इक कहानी अपने किरदारों के बीच
मुर्तइश हैं चंद साँसें तो सुकूत-ए-शहर में
कोई तो ज़िंदा है इस मलबे के अम्बारों के बीच
घुट के मर जाएँ नदामत से न अपने रहनुमा
फँस गई हैं गर्दनें तहसीन के हारों के बीच
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