तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
मीना है ये और बादा-ए-नाब है रूह
या चंग मानी-ए-अज़ल में 'शहबाज़'
ये तन है रुबाब इस की मिज़राब है रूह
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'शहबाज़' में ऐब ही नहीं कुल
अख़्लाक़ के उंसुर हों अगर अस्ल मिज़ाज
मिट्टी का ही घर न होगा बर्बाद
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
है जिस की सरिश्त में सफ़ाहत का मैल
ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द
दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
दौलत नहीं जब तक ये ज़ुबूँ रहते हैं
है इश्क़ तो फिर असर भी होगा
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल