तालीम की मीज़ान में हैं तुलते जाते
हैं जौहर-ए-तब्अ रोज़ खुलते जाते
है अक़्ल की बज़्म आलिमों रौशन
ख़ुद गरचे हैं मिस्ल-ए-शम्अ' घुलते जाते
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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Gulzar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
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मिट्टी का ही घर न होगा बर्बाद
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
'शहबाज़' में ऐब ही नहीं कुल
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
ये बात अजीब निगाह में आई है
ईरानी फ़साहत और हिजाज़ी ग़ैरत
बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
शब-ए-फ़िराक़ का छाया हुआ है रोब ऐसा