ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द
हिम्मत में मुरव्वत में इबादत में हो मर्द
लालच से शेख़त से तअ'ल्ली से हो दूर
इतना हो कोई तो क़ौम का हो हमदर्द
Rahat Indori
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कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
पाता नहीं मौत पर कोई शख़्स ज़फ़र
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
ईरानी फ़साहत और हिजाज़ी ग़ैरत
बूँद अश्कों से अगर लुत्फ़-ए-रवानी माँगे
दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
तालीम की मीज़ान में हैं तुलते जाते