ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
कि कुछ दिनों में न मुँह रहेगा न मुँह में चलती ज़बाँ रहेगी
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लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
शब-ए-फ़िराक़ का छाया हुआ है रोब ऐसा
कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
कहते हो कि कर लेंगे हम इस काम को कल
जिस इल्म से अच्छों की हो ख़ूबी ज़ाहिर
है इश्क़ तो फिर असर भी होगा
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
ईरानी फ़साहत और हिजाज़ी ग़ैरत
पाता नहीं मौत पर कोई शख़्स ज़फ़र
मिट्टी का ही घर न होगा बर्बाद
ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द
दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल