दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर
इस का काटा कोई अफ़ई भी न पानी माँगे
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इस से कि कहीं के शाह हो सकते हम
है इश्क़ तो फिर असर भी होगा
न अपना बाक़ी ये तन रहेगा न तन में ताब ओ तवाँ रहेगी
अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
लाज़िम नहीं इस दौलत-ए-फ़ानी पे दिमाग़
अख़्लाक़ के उंसुर हों अगर अस्ल मिज़ाज
तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
हम रो रो अश्क बहाते हैं वो तूफ़ाँ बैठे उठाते हैं
है जिस की सरिश्त में सफ़ाहत का मैल