अंजाम ख़ुशी का दुनिया में सच कहते हो ग़म होता है
साबित है गुल और शबनम से जो हँसता है वो रोता है
Wasi Shah
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मर्ग़ूब हो गर तुम को उमूमी शाबाश
कहाँ नसीब ज़मुर्रद को सुर्ख़-रूई ये
ईरानी फ़साहत और हिजाज़ी ग़ैरत
'शहबाज़' में ऐब ही नहीं कुल
दौलत के भरोसे पे न होना ग़ाफ़िल
शब-ए-फ़िराक़ का छाया हुआ है रोब ऐसा
मिट्टी का ही घर न होगा बर्बाद
ख़ुदा ने मुँह में ज़बान दी है तो शुक्र ये है कि मुँह से बोलो
तन ऐश का घर है इस का अस्बाब है रूह
ग़ैरत में सियासत में शुजाअ'त में हो मर्द
दिल तो दिल अफ़ई-ए-गेसू वो बला है काफ़िर