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परेशाँ था मगर ऐसा नहीं था - सावन शुक्ला कविता - Darsaal

परेशाँ था मगर ऐसा नहीं था

परेशाँ था मगर ऐसा नहीं था

कि मुझ में कोई तुझ जैसा नहीं था

तबाह होने लगी हर वक़्त वो भी

अकेला मैं ही दीवाना नहीं था

जफ़ा ग़म हिज्र ख़्वाहिश याद बातें

अगर देखो तो उस में क्या नहीं था

ग़ज़ब जल्वा-नुमा था वस्ल उस का

अभी तक सोचता हूँ था नहीं था

तुम्हारे इश्क़ के हाथों से मरने

हमें आना पड़ा आना नहीं था

वहीं से जिस्म उस का काँपता था

जहाँ पर मैं उसे छूता नहीं था

मोहब्बत थी न थी ये बात छोड़ो

जो तुम ने कह दिया कहना नहीं था

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In Hindi By Famous Poet Sawan Shukla. is written by Sawan Shukla. Complete Poem in Hindi by Sawan Shukla. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.