वीरानियों के ख़ार तो फूलों की छुवन भी
वीरानियों के ख़ार तो फूलों की छुवन भी
इस राह में आए हैं बयाबाँ भी चमन भी
खुलना था फ़क़त एक दरीचा मिरे घर का
फिर रौशनी भी आई, हुई दूर घुटन भी
बच्चे ने सजाई है कोई और ही दुनिया
खींचा है जहाँ बाघ वहीं रक्खा है हिरन भी
याद अपने वतन की मुझे आती नहीं अब तो
अब भूल चुका होगा मुझे मेरा वतन भी
हस्सास बना डाला मुझे हद से ज़ियादा
और इस पे मोहब्बत ने दिया शेर का फ़न भी
किस खोज में थे शहर के सब लोग न जाने
चेहरों पे उदासी भी है आँखों में थकन भी
आसान नहीं है ये सफ़र रूह का 'सौरभ'
हाइल है तिरी राह में इक दश्त-ए-बदन भी
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