तन्हाई का इलाज ये महँगा बहुत पड़ा
तन्हाई का इलाज ये महँगा बहुत पड़ा
उकता के मैं ने न्यूज़ का चैनल लगाया था
बस ये कि वज्ह-ए-तर्क-ए-तअल्लुक़ ही कुछ रहे
उस ने ज़रा सी बात पे झगड़ा खड़ा किया
बिगडैल हो चले थे कई दिन से मेरे ख़्वाब
सच की छड़ी से शाम उन्हें सीधा कर दिया
खोला था रात माज़ी का एक एल्बम कि उफ़
यादों का मेरे ज़ेहन में तानता बँधा रहा
वो बार बार पूछ रहा था वही सवाल
मजबूर हो के झूट मुझे बोलना पड़ा
दरिया ने मेरे पाँव अखाड़े शुरूअ' में
जब मैं डटा रहा तो वो कमज़ोर पड़ गया
तन्हाई का तुम्हारी था मुमकिन यही इलाज
घर के हर एक कोने को चीज़ों से भर दिया
(621) Peoples Rate This