कोई दिलकश सा अफ़्साना किसी दिलदार की बातें
कोई दिलकश सा अफ़्साना किसी दिलदार की बातें
फ़सुर्दा रात है छोड़ो लब-ओ-रुख़्सार की बातें
ये मुमकिन है परिंदा क़ैद हो कोई मिरे अंदर
मुझे अच्छी नहीं लगतीं दर-ओ-दीवार की बातें
ज़रा ये भी तो देखो बे-सरों के बीच बैठे हो
कहाँ करने लगे हो तुम अमाँ दस्तार की बातें
तुम्हारी शायरी से बोर मैं अब हो गया 'सौरभ'
वही हालात का रोना वही बेकार की बातें
(600) Peoples Rate This