कोताह न उम्र-ए-मय-परस्ती कीजे
ज़ुल्फ़ों से तिरी दराज़-दस्ती कीजे
साक़ी न हो जो शराब है आज वो अब्र
पानी पी पी के फ़ाक़ा-मस्ती कीजे
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ऐ आह तिरी क़द्र असर ने तो न जानी
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
देखे बुलबुल जो यार की सूरत
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
काम आई कोहकन की मशक़्क़त न इश्क़ में
बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
जब नज़र उस की आन पड़ती है