गर यार के सामने मैं रोया तो क्या
मिज़्गाँ में जो लख़्त-ए-दिल पिरोया तो क्या
ये दाना-ए-अश्क सब्ज़ होना मालूम
इस शूर ज़मीं में तुख़्म बोया तो क्या
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(903) Peoples Rate This
चेहरे पे न ये नक़ाब देखा
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
बदला तिरे सितम का कोई तुझ से क्या करे
मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
इस कश्मकश से दाम के क्या काम था हमें
नहीं है घर कोई ऐसा जहाँ उस को न देखा हो
बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का
साक़ी हमारी तौबा तुझ पर है क्यूँ गवारा
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह
किसे ताक़त है शरह-ए-शौक़ उस मज्लिस में करने की
है मुद्दतों से ख़ाना-ए-ज़ंजीर बे-सदा