ज़ालिम न मैं कहा था कि इस ख़ूँ से दरगुज़र
'सौदा' का क़त्ल है ये छुपाया न जाएगा
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मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
कहियो सबा सलाम हमारा बहार से
यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
हर आन आ मुझी को सताते हो नासेहो
कौन किसी का ग़म खाता है
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना
'सौदा' शेर में है बड़ाई तुझ को
ज़ाहिद सभी हैं नेमत-ए-हक़ जो है अक्ल-ओ-शर्ब
दिल ले के हमारा जो कोई तालिब-ए-जाँ है
मत पूछ ये कि रात कटी क्यूँके तुझ बग़ैर