ये रंजिश में हम को है बे-इख़्तियारी
तुझे तेरी खा कर क़सम देखते हैं
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मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
तुझ इश्क़ के मरीज़ की तदबीर शर्त है
'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
ऐ शैख़-ए-हरम तक तुझे आना जाना
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
जब नज़र उस की आन पड़ती है
'सौदा' तिरी फ़रियाद से आँखों में कटी रात
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
जिस दम वो सनम सवार होवे
साक़ी हमारी तौबा तुझ पर है क्यूँ गवारा
आराम फिर कहाँ है जो हो दिल में जा-ए-हिर्स
काम आई कोहकन की मशक़्क़त न इश्क़ में