तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम क्या होगा
ख़ुदा जाने कि इस आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा
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आराम फिर कहाँ है जो हो दिल में जा-ए-हिर्स
हर आन आ मुझी को सताते हो नासेहो
'सौदा' हुए जब आशिक़ क्या पास आबरू का
ये तो नहीं कहता हूँ कि सच-मुच करो इंसाफ़
बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े
हिन्दू हैं बुत-परस्त मुसलमाँ ख़ुदा-परस्त
मक़्दूर नहीं उस की तजल्ली के बयाँ का
ने ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से काम
बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का