'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
क्या जानिए तू ने उसे किस आन में देखा
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क्या करूँगा ले के वाइज़ हाथ से हूरों के जाम
सदमा हर-चंद तिरे जौर से जाँ पर आया
देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़
नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है
किस मुँह से फिर तू आप को कहता है इश्क़-बाज़
ज़ालिम न मैं कहा था कि इस ख़ूँ से दरगुज़र
मत पूछ ये कि रात कटी क्यूँके तुझ बग़ैर
'सौदा' शेर में है बड़ाई तुझ को
बहार-ए-बाग़ हो मीना हो जाम-ए-सहबा हो
दिल के टुकड़ों को बग़ल-गीर लिए फिरता हूँ