साक़ी हमारी तौबा तुझ पर है क्यूँ गवारा
मिन्नत नहीं तो ज़ालिम तर्ग़ीब या इशारा
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(691) Peoples Rate This
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह
मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
हस्ती को तिरी बस है मियाँ गुल की इशारत
कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'
नौबत-ए-क़ैस हो चुकी आख़िर
दिलदार उस को ख़्वाह दिल-आज़ार कुछ कहो
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
ज़ालिम न मैं कहा था कि इस ख़ूँ से दरगुज़र
बे-सबाती ज़माने की नाचार
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है
ज़ाहिद सभी हैं नेमत-ए-हक़ जो है अक्ल-ओ-शर्ब