साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
तू मिन्नतों से जाम दे और मैं कहूँ कि बस
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गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
दिलदार उस को ख़्वाह दिल-आज़ार कुछ कहो
जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ
गदा दस्त-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
फ़िराक़-ए-ख़ुल्द से गंदुम है सीना-चाक अब तक
मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
धूम से सुनते हैं अब की साल आती है बहार
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को
समझे थे हम जो दोस्त तुझे ऐ मियाँ ग़लत
तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया