न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में
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मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
कब दिल शिकस्त-गाँ से कर अर्ज़-ए-हाल आया
बे-सबाती ज़माने की नाचार
बे-वज्ह नईं है आइना हर बार देखना
यारो वो शर्म से जो न बोला तो क्या हुआ
क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना
गर कीजिए इंसाफ़ तो की ज़ोर वफ़ा मैं
हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का
बेचैन जो रखती है तुम्हें चाह किसू की
जब नज़र उस की आन पड़ती है
दिखाऊँगा तुझे ज़ाहिद उस आफ़त-ए-दीं को
'सौदा' तिरी फ़रियाद से आँखों में कटी रात