मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
दिल ख़ाक हो गया है किसी बे-क़रार का
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वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
ज़ाहिद सभी हैं नेमत-ए-हक़ जो है अक्ल-ओ-शर्ब
ले दीदा-ए-तर जिधर गए हम
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
हस्ती को तिरी बस है मियाँ गुल की इशारत
साक़ी हमारी तौबा तुझ पर है क्यूँ गवारा
हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का
दिल ले के हमारा जो कोई तालिब-ए-जाँ है
दिल में तिरे जो कोई घर कर गया
जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
'सौदा' जो बे-ख़बर है वही याँ करे है ऐश
समझे थे हम जो दोस्त तुझे ऐ मियाँ ग़लत