मत पूछ ये कि रात कटी क्यूँके तुझ बग़ैर
इस गुफ़्तुगू से फ़ाएदा प्यारे गुज़र गई
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किस के हैं ज़ेर-ए-ज़मीं दीदा-ए-नम-नाक हनूज़
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
कहियो सबा सलाम हमारा बहार से
बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का
'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
मैं ने तुम को दिल दिया और तुम ने मुझे रुस्वा किया
देखे बुलबुल जो यार की सूरत
बार-हा दिल को मैं समझा के कहा क्या क्या कुछ
दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का
'सौदा' तिरी फ़रियाद से आँखों में कटी रात
बादशाहत दो जहाँ की भी जो होवे मुझ को