किस मुँह से फिर तू आप को कहता है इश्क़-बाज़
ऐ रू-सियाह तुझ से तो ये भी न हो सका
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जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है
ये रंजिश में हम को है बे-इख़्तियारी
कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'
मै-कशाँ रूह हमारी भी कभी शाद करो
धूम से सुनते हैं अब की साल आती है बहार
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह
आराम फिर कहाँ है जो हो दिल में जा-ए-हिर्स
'सौदा' जहाँ में आ के कोई कुछ न ले गया
जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
मक़्दूर नहीं उस की तजल्ली के बयाँ का
ज़ाहिद सभी हैं नेमत-ए-हक़ जो है अक्ल-ओ-शर्ब