कौन किसी का ग़म खाता है
कहने को ग़म-ख़्वार है दुनिया
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किस मुँह से फिर तू आप को कहता है इश्क़-बाज़
ज़ालिम न मैं कहा था कि इस ख़ूँ से दरगुज़र
बदला तिरे सितम का कोई तुझ से क्या करे
बहार-ए-बाग़ हो मीना हो जाम-ए-सहबा हो
इश्क़ से तो नहीं हूँ मैं वाक़िफ़
'सौदा' ख़ुदा के वास्ते कर क़िस्सा मुख़्तसर
फ़िराक़-ए-ख़ुल्द से गंदुम है सीना-चाक अब तक
'सौदा' जहाँ में आ के कोई कुछ न ले गया
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तुझ इश्क़ के मरीज़ की तदबीर शर्त है
मै-कशाँ रूह हमारी भी कभी शाद करो
ऐ शैख़-ए-हरम तक तुझे आना जाना