कहते थे हम न देख सकें रोज़-ए-हिज्र को
पर जो ख़ुदा दिखाए सो नाचार देखना
Rahat Indori
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हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का
मत पूछ ये कि रात कटी क्यूँके तुझ बग़ैर
जब नज़र उस की आन पड़ती है
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
कहियो सबा सलाम हमारा बहार से
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
फ़िराक़-ए-ख़ुल्द से गंदुम है सीना-चाक अब तक
'सौदा' जो बे-ख़बर है वही याँ करे है ऐश
दिखाऊँगा तुझे ज़ाहिद उस आफ़त-ए-दीं को
ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
दिल ले के हमारा जो कोई तालिब-ए-जाँ है
तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया