कहियो सबा सलाम हमारा बहार से
हम तो चमन को छोड़ के सू-ए-क़फ़स चले
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नौबत-ए-क़ैस हो चुकी आख़िर
'सौदा' जहाँ में आ के कोई कुछ न ले गया
हिन्दू हैं बुत-परस्त मुसलमाँ ख़ुदा-परस्त
बे-सबाती ज़माने की नाचार
बादशाहत दो जहाँ की भी जो होवे मुझ को
यारो वो शर्म से जो न बोला तो क्या हुआ
कहते थे हम न देख सकें रोज़-ए-हिज्र को
मक़्दूर नहीं उस की तजल्ली के बयाँ का
'सौदा' ख़ुदा के वास्ते कर क़िस्सा मुख़्तसर
गर कीजिए इंसाफ़ तो की ज़ोर वफ़ा मैं
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
धूम से सुनते हैं अब की साल आती है बहार