काम आई कोहकन की मशक़्क़त न इश्क़ में
पत्थर से जू-ए-शीर के लाने ने क्या किया
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गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
'सौदा' हुए जब आशिक़ क्या पास आबरू का
नहीं है घर कोई ऐसा जहाँ उस को न देखा हो
अपने का है गुनाह बेगाने ने क्या किया
गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
'सौदा' तू इस ग़ज़ल को ग़ज़ल-दर-ग़ज़ल ही कह
साक़ी हमारी तौबा तुझ पर है क्यूँ गवारा
अम्मामे को उतार के पढ़ीयो नमाज़ शैख़
गदा दस्त-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
धूम से सुनते हैं अब की साल आती है बहार
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं