जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
ये याद रहे हम को बहुत याद करोगे
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ज़ालिम न मैं कहा था कि इस ख़ूँ से दरगुज़र
किसे ताक़त है शरह-ए-शौक़ उस मज्लिस में करने की
ऐ आह तिरी क़द्र असर ने तो न जानी
फ़िराक़-ए-ख़ुल्द से गंदुम है सीना-चाक अब तक
गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
समझे थे हम जो दोस्त तुझे ऐ मियाँ ग़लत
देखूँ हूँ यूँ मैं उस सितम-ईजाद की तरफ़
ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
किस के हैं ज़ेर-ए-ज़मीं दीदा-ए-नम-नाक हनूज़