इस कश्मकश से दाम के क्या काम था हमें
ऐ उल्फ़त-ए-चमन तिरा ख़ाना-ख़राब हो
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
इश्क़ से तो नहीं हूँ मैं वाक़िफ़
गर यार के सामने मैं रोया तो क्या
'सौदा' जो बे-ख़बर है वही याँ करे है ऐश
दिखाऊँगा तुझे ज़ाहिद उस आफ़त-ए-दीं को
जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
चेहरे पे न ये नक़ाब देखा
कहते थे हम न देख सकें रोज़-ए-हिज्र को
कौन किसी का ग़म खाता है
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस