हर आन आ मुझी को सताते हो नासेहो
समझा के तुम उसे भी तो यक-बार कुछ कहो
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ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
जो गुज़री मुझ पे मत उस से कहो हुआ सो हुआ
साक़ी हमारी तौबा तुझ पर है क्यूँ गवारा
गर यार के सामने मैं रोया तो क्या
किसे ताक़त है शरह-ए-शौक़ उस मज्लिस में करने की
बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
'सौदा' जहाँ में आ के कोई कुछ न ले गया