है मुद्दतों से ख़ाना-ए-ज़ंजीर बे-सदा
मालूम ही नहीं कि दिवाने किधर गए
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दिल ले के हमारा जो कोई तालिब-ए-जाँ है
कोताह न उम्र-ए-मय-परस्ती कीजे
मैं ने तुम को दिल दिया और तुम ने मुझे रुस्वा किया
किस मुँह से फिर तू आप को कहता है इश्क़-बाज़
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
दिल के टुकड़ों को बग़ल-गीर लिए फिरता हूँ
बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का
गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है
क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना
ले दीदा-ए-तर जिधर गए हम