दिल के टुकड़ों को बग़ल-गीर लिए फिरता हूँ
कुछ इलाज इस का भी ऐ शीशा-गिराँ है कि नहीं
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मस्त-ए-सहर ओ तौबा-कुनाँ शाम का हूँ मैं
धूम से सुनते हैं अब की साल आती है बहार
तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया
देखे बुलबुल जो यार की सूरत
तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम क्या होगा
बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा
ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
हर आन आ मुझी को सताते हो नासेहो
'सौदा' ख़ुदा के वास्ते कर क़िस्सा मुख़्तसर
क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना