दिखाऊँगा तुझे ज़ाहिद उस आफ़त-ए-दीं को
ख़लल दिमाग़ में तेरे है पारसाई का
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इश्क़ से तो नहीं हूँ मैं वाक़िफ़
मगर वो दीद को आया था बाग़ में गुल के
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
मैं ने तुम को दिल दिया और तुम ने मुझे रुस्वा किया
'सौदा' जो तिरा हाल है इतना तो नहीं वो
हर आन आ मुझी को सताते हो नासेहो
तुझ इश्क़ के मरीज़ की तदबीर शर्त है
'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत
आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का
किस के हैं ज़ेर-ए-ज़मीं दीदा-ए-नम-नाक हनूज़