बदला तिरे सितम का कोई तुझ से क्या करे
अपना ही तू फ़रेफ़्ता होवे ख़ुदा करे
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Allama Iqbal
Rahat Indori
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हस्ती को तिरी बस है मियाँ गुल की इशारत
'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत
'सौदा' तिरी फ़रियाद से आँखों में कटी रात
न जिया तेरी चश्म का मारा
मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से
साक़ी गई बहार रही दिल में ये हवस
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
तुझ क़ैद से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया
गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
दिल के टुकड़ों को बग़ल-गीर लिए फिरता हूँ
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना