अम्मामे को उतार के पढ़ीयो नमाज़ शैख़
सज्दे से वर्ना सर को उठाया न जाएगा
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Faiz Ahmad Faiz
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मस्त-ए-सहर ओ तौबा-कुनाँ शाम का हूँ मैं
तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम क्या होगा
यूँ देख मिरे दीदा-ए-पुर-आब की गर्दिश
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
ले दीदा-ए-तर जिधर गए हम
किसे ताक़त है शरह-ए-शौक़ उस मज्लिस में करने की
ज़ाहिद सभी हैं नेमत-ए-हक़ जो है अक्ल-ओ-शर्ब
बे-सबाती ज़माने की नाचार
दिल ले के हमारा जो कोई तालिब-ए-जाँ है
गर कीजिए इंसाफ़ तो की ज़ोर वफ़ा मैं
बरहमन बुत-कदे के शैख़ बैतुल्लाह के सदक़े
करता हूँ तेरे ज़ुल्म से हर बार अल-ग़ियास