आदम का जिस्म जब कि अनासिर से मिल बना
कुछ आग बच रही थी सो आशिक़ का दिल बना
Jaun Eliya
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(582) Peoples Rate This
गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
है मुद्दतों से ख़ाना-ए-ज़ंजीर बे-सदा
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
'सौदा' जो बे-ख़बर है वही याँ करे है ऐश
ऐ आह तिरी क़द्र असर ने तो न जानी
मस्त-ए-सहर ओ तौबा-कुनाँ शाम का हूँ मैं
क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह
यारो वो शर्म से जो न बोला तो क्या हुआ
आराम फिर कहाँ है जो हो दिल में जा-ए-हिर्स
'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत
या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे