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वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं - मोहम्मद रफ़ी सौदा कविता - Darsaal

वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं

वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं

अब देखने को जिन के आँखें तरसतियाँ हैं

आया था क्यूँ अदम में क्या कर चला जहाँ में

ये मर्ग-ओ-ज़ीस्त तुझ बिन आपस में हँसतियाँ हैं

क्यूँकर न हो मुशब्बक शीशा सा दिल हमारा

उस शोख़ की निगाहें पत्थर में धँसतियाँ हैं

बरसात का तो मौसम कब का निकल गया पर

मिज़्गाँ की ये घटाएँ अब तक बरसतियाँ हैं

लेते हैं छीन कर दिल आशिक़ का पल में देखो

ख़ूबाँ की आशिक़ों पर क्या पेश-दस्तियाँ हैं

इस वास्ते कि हैं ये वहशी निकल न जावें

आँखों को मेरी मिज़्गाँ डोरों से कसतियाँ हैं

क़ीमत में उन के गो हम दो जग को दे चुके अब

उस यार की निगाहें तिस पर भी सस्तियाँ हैं

उन ने कहा ये मुझ से अब छोड़ दुख़्त-ए-रज़ को

पीरी में ऐ दिवाने ये कौन मस्तियाँ हैं

जब मैं कहा ये उस से 'सौदा' से अपने मिल के

इस साल तू है साक़ी और मय-परस्तियाँ हैं

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In Hindi By Famous Poet Sauda Mohammad Rafi. is written by Sauda Mohammad Rafi. Complete Poem in Hindi by Sauda Mohammad Rafi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.