मस्त-ए-सहर ओ तौबा-कुनाँ शाम का हूँ मैं
मस्त-ए-सहर ओ तौबा-कुनाँ शाम का हूँ मैं
क़ाज़ी के गिरफ़्तार नित ए'लाम का हूँ मैं
बंदा कहो ख़ादिम को चाकर कहो मुझ को
जो कुछ कहो सो साक़ी-ए-गुलफ़म का हूँ मैं
ख़िदमत में मुझे इश्क़ की है दिल से इरादत
ने मो'तक़िद-ए-कुफ़्र न इस्लाम का हूँ मैं
यक रोज़ हलाल उस को भी मैं कर के न खाया
नौकर जो ख़राबात में दो जाम का हूँ मैं
ने फ़िक्र है दुनिया की न दीं का मुतलाशी
इस हस्ती-ए-मौहूम में किस काम का हूँ मैं
यक-रंग हूँ आती नहीं ख़ुश मुझ को दो-रंगी
मुनकिर सुख़न-ओ-शेर में ईहाम का हूँ मैं
मतलूब-ए-दुआ हक़ में नहीं अपने किसू की
तालिब लब-ए-महबूब से दुश्नाम का हूँ मैं
बंदा है ख़ुदा का तो यक़ीं कर कि बुताँ का
बंदा ये जहाँ बे-ज़र-ओ-बे-दाम का हूँ मैं
है शीशा-ए-मय ऐनक-ए-पीरी मुझे 'सौदा'
नज़्ज़ारा-कुन अब शेब के अय्याम का हूँ मैं
(529) Peoples Rate This