किस के हैं ज़ेर-ए-ज़मीं दीदा-ए-नम-नाक हनूज़
किस के हैं ज़ेर-ए-ज़मीं दीदा-ए-नम-नाक हनूज़
जा-ब-जा सोत हैं पानी के ता ख़ाक हनूज़
गुल ज़मीं से जो निकलता है ब-रंग-ए-शोला
कौन जाँ-सोख़्ता जलता है तह-ए-ख़ाक हनूज़
एक दिन घेर मैं दामन का तिरे देखा था
गिर्द फिरते हैं गिरेबाँ के मिरे चाक हनूज़
जुस्तुजू कर के तुझ आफ़त को बहम पहुँचाया
बाज़ आते नहीं गर्दिश से ये अफ़्लाक हनूज़
बाग़ में जब से गया था तू ख़ुमार-आलूदा
गुल हैं ख़ामियाज़े में अंगड़ाई में हैं ताक हनूज़
ज़ख़्म दिल पर है मिरे तेग़-ए-जुनूँ का नासेह
तो गिरेबान का नादाँ सिए है चाक हनूज़
क्यूँ-के 'सौदा' मैं करूँ वस्फ़-ए-बुना-गोश उस का
की नहीं आब-ए-गुहर से ये ज़बाँ पाक हनूज़
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